वो तेरी एक भूल
सुबह उगते हुए सूरज से मैंने पूछा
यहां जो उग रहा है तू कहीं तो ढल रहा होगा
किसी की नींद आखों से चुराने तू यहां आया
कोई तो तेरे ना होने पर सपने बुन रहा होगा
ना जाने कौनसा रस्ता जो पीछे छोड़ तू आया
ना जाने कितनी बातें अँधेरे में गुम गयी होंगी
करेगा कौन कल शिकवा तुझसे बेवक्त जाने का
तेरे लौट आने तक कितनी शमांए बुझ गयी होंगी
वो पूरी दास्तान बता अब किसको सुनायेगा
जो रस्ता देखती थी वो पलके थक गयी होंगी
वो मेरी बीते वक्त एक पल कैसै चुकाएगा
वो तेरी एक भूल किसी की आहें बन गयी होंगी