…वो तुम जैसी सांझ
तुम्हारी तरह ही
सुरमई, निर्मल,
आभा का आंचल खिसकाती
ये सांझ, अक्सर बहुत शरमाती है
ये अक्सर बातें करने से
कतराती है
बचती है कोई कह न दे
मन की परतों को खोल न दे
बस अकेली
अपने में गुनगुनाती
सुनहरे से केशों में उंगलियां घुमाती
कभी वो
दूर तक निकल जाती थी
मेरे साथ
अब अकेली टहल आती है
नदी के साथ-साथ
किनारे-किनारे…।
तन्हा….शांत, सहज और बेराह…।
संदीप कुमार शर्मा