वो झोंका
वो झोंका हवा का झट से आया मुझसे मिलने को
और बेहद धीरे से मेरे कानों में फुसफुसाकर सुना दी
जाड़े में जमी हुई रूहों की और भुलाये हुए दिलों के किस्से
मैं जैसे चंद लम्हों के लिए थम गई
और बस उस झोंके की छुवन को महसूस करने लगी
और फिर यूँही साहिल पे कुछ देर तक टहलने लगी।
उस झोंके को अपनी राह बदलने के लिए बहलाकर बताया
ताकि वो पहाड़ो से नीचे उतरे और खाड़ी के उस पार जा बहे
शायद ये झोंका अब भी कुछ ज़िन्दा रूहों का हाल पूछ सकती थी
और खुशबू बटोर के ला सकती थी मई की गर्मियों की।