वो जो है नहीं….
सत्य क्या है?
किसने जाना है सत्य को?
परिभाषा क्या है सत्य की?
कहते हैं सत्य छुपता नहीं,
सत्य हर युग, हर काल में
सदा सत्य ही होता है,
परंतु ….क्या सच में?
नहीं,मेरे लिए तो कदापि नहीं….
सत्य बहुत कुरूप होता है,
क्योंकि सत्य किसी का हितैषी नहीं होता,
सत्यमेव जयते…
मेरी आंखों से ऐसा कोई मंजर नहीं गुजरा
जहां सत्य ने किसी को न्याय दिलाया हो,
पूछना किसी पीड़ित से, जिसे सच बोलकर न्याय मिला हो
पूछना किसी वकील से, जिसने सच बोलकर
किसी का भला किया हो, मैं तो ऐसे किसी को नहीं जानती
हां , शायद ,किसी को न्याय मिला भी होगा,तो
उसकी हिम्मत और गैरत टूट जाने पर ,
ऐसे सत्य की खोज से क्या हासिल होगा?
दूसरों के अंह की तुष्टि या फिर अपने आत्मसम्मान
को बिखरते हुए देखने का मलाल……
आज का सच तो यही है.