वो जो दिल के खास है
वो जो दिल के ख़ास है
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वो जो दिल के खास है,
मन मे रहते बन आस हैं।
मज़बूरियों में हैं घिरे हुए,
बुझती न प्रेम-प्यास है।
जीत कर भी तो हार है,
जिंदगी तो खेल ताश है।
मधुर अंगूर हैं खटाई में,
अरमान सारे ही नाश है।
पकड़ से भी बाहर हुई,
असफल सारे प्रयास हैं।
सतरंगी तितली उड़ रही,
भंवरे बैठते आसपास हैं।
खुशियाँ हम से दूर हुई,
ग़मों की गठरी पास है।
किस्तों में ही मिल सही,
तू ही तो हमको रास है।
प्रेम-पीड़ा खूब बढ़ रही,
प्रिया चरणों के दास है।
मनसीरत नैनों में नमी,
मुश्किल में हुए सांस हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)