वो जो करीब थे “क़रीब” आए कब..
वो जो करीब थे “क़रीब” आए कब..
मंजिले दूर न थी, कदम बढ़ाए कब..
खुली रखी थी मुट्ठियां एक मुद्दत से मगर..
ख्वाबों ने हाथ हमसे छुड़ाए कब..
भूल जाते वो हमें गुजरा जमाना समझ..
पर हम अजनबी की तरह पेश आए कब..
मैंने तो खुला रखा था आसमां ख्वाहिशों का..
तुमने पिंजरे से मगर पंछी उड़ाए कब..
फलक से गिरी थी रहमत ए सजदे मेरी..
मेने फैला के दामन हाथ बढ़ाए कब..
उड़ानों से नजदीकियां कम नहीं थी यूं तो..
पर जमी से हमने पांव हटाए कब..