–वो चुस्कियां-
कितनी भी कोशिश कर ली
तुझ से दूर दूर जाने की
पर तेरा मेरे लबों पर आकर
अपनी गर्माहट के साथ
वो एहसास दिलवा देना
कि मेरे बिन तुम कुछ नहीं
फिर क्यूँ दूर दूर जाते हो
हर सुबह आज तक
उठते ही गर्म गर्म अपने
लबों से लगाते हो
एक घूँट में आँख खोल
कर अंदाज दिखाते हो
मैं वो चाय की चुस्की हूँ
जिस को आज तक तुम
सब से पहले ही जगाते हो
सारा सारा दिन दफ्तर में
शोर मचा मचा के मंगवाते हो
आखिर कैसे दूर कर दोगे मुझे
क्यूँ अपनी प्यारी चाय की
चुस्की को सताते हो
मैं वो नहीं जो आलस्य में
काम करवाऊं दफ्तर के
मैं तो तुम्हे सदा जगाती हूँ
थक जाते हो जब इतना
उसी वक्त तो मुझे बुलाते हो
कभी न होना दूर मुझ से
मैं वो चुस्कियां हूँ
जिस के साथ साथ अपने सब
काम तुम बटाते हो
अजीत कुमार तलवार
मेरठ