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7 Jan 2019 · 1 min read

वो चाहता है उसे मैं भी लाजवाब कहूँ।

बह्र–रमल मुसम्मन मक़बून महज़ूफ

ग़ज़ल – 1212 1122 1212 22
वो चाहता है उसे मैं भी लाजवाब कहूँ।
किसी चराग़ को कैसे मैं आफताब कहूं।।

वो गुलबदन है ज़ुबां पर हैं उसके कांटे भी।
तो सोचता हूं उसे क्या मैं अब गुलाब कहूँ।।

ख़ुदा ने रुख़ पे दिया क्या जो एक तिल का निशां।
उसे ये जिद है उसे अब मैं माहताब कहूँ।।

हैं मुझमें ऐब कई झाँक कर जो देखा है।
ये हक़ नहीं है मुझे तुमको अब खराब कहूँ।।

जो लोग कहते अगर हुस्न की उसे मलिका।
अनीश खुद के लिए मैं भी तो नवाब कहूँ।।

अनीश शाह

1 Like · 263 Views
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