क्या….
क्या….
तुम भी मुझे उतना ही प्यार करती हो,
मुझे उतना ही याद करती हो,
एक झलक देखने को मेरी,
क्या उतना ही बेक़रार रहती हो,
चाहती हो क्या तुम भी,
मेरे हाथों में हो हाथ अपना..
क्या तुम भी चाहती हो,
मुझसे बात करना,
बनाना हमराह मुझे अपना..
चाहती हो मिटाना दूरियां हमारे दरमियाँ,
या…
फ़िर प्रेम मेरा एक तरफा ही है
साथ जीने की चाहत भी
हकीकत नहीं, एक ख़्वाब ही है
अधूरी ख्वाहिशों सा
प्यार भी मेरा अधूरा है
तुम चाहो, न चाहो मुझे
तुम हो महफूज दिल में हमारे
प्रेम हमारा, बेशक अधूरा हो
मेरी तन्हाइयों में ज़िक्र बस तुम्हारा है!!
हिमांशु Kulshreshtha