वो चाँदनी बात
***** वी चाँदनी रात ******
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याद आ गई वो चाँदनी रात,
जब हुई थी मेरी चाँद से बात।
देख कर बेसुध थे अंग हमारे,
काम नहीं कर रहे थे हाथ लात।
तमस का पड़ गया घना साया,
खूब हुई आँसओं की बरसात।
आसमान में चमकते थे तारे,
सितारों भरी मिली थी सौगात।
शुरू नहीं हुई कोई वार्तालाप,
खत्म होने को आई मुलाकात।
हूर सी नूर मुँह मोड़ कर चली,
जाते देख कर हो गया हताश।
वापिस आएंगी गुजरी बहारें,
देखिए कब बदलेंगे ख्यालात।
बेसब्री से पल का है इंतजार,
समझेंगे हमारे कभी जज्बात।
मनसीरत के जारी हैं प्रयास,
जल्द ही बदल जाएंगे हालात।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)