वो गौरैया,
वो गौरैया,
अब नहीं आती,
गीत खुशी के,
वो अब नहीं गाती,
सुबह सवेरे,
पेड़ों पर चहचहाती थी,
मधुर गान से
नित्य हमें जगाती थी
फिर फुदक कर
हमारी मुंडेर पर आती थी,
चूँ चूँ, चींचीं करती,
अपनी भाषा में कुछ गाती,
दाना चुगती,पानी पीती
फिर बिटिया संग बतियाती थी,
दोनों मिलकर, दौड़ लगाते
घर का कोना कोना चहकाते थे,
देख देख उनकी अठखेलियाँ,
बाबुजी भी,मंद मंद मुस्काते थे,
थक कर गौरैया भी
बिटिया की गोद बैठ जाती थी
करके कुछ देर विश्राम
फिर वो फुर्र से उड़ जाती थी,
इस तरह हर दिन दोनों,
आँगन में खुशियां बरसाती थी,
!
जानें गई वो कौन देश को,
दोनों नजर नहीं अब आती है,
न गौरैया, न बिटिया,
अब उस घर को चहकाती है,
ढूँढ रहा हूं
मैं कोना कोना
मिले नहीं
वो वक़्त सलोना,
!
घर वहीं आज भी पुराना
उन यादों के संग जीता हूँ
ज़र जर होती दीवारों संग,
आंसू चुप छुप कर पीता हूँ.
***
स्वरचित: डी के निवातिया