वो गलियां मेरे गांव की
जब सूखी बंजर आंखों मे़ं
यादों की गघरी भर सी जाती है
यारों के संग खेलने की
फिर ख्वाहिशें संवर सी जाती हैं
जब अकेले खाना खाने मे़ं
क्षुधा उदर मे़ं ही मर सी जाती हैं
जब घबराकर दुनिया से रूह
अपनी परछाई से भी डर सी जाती हैं
वो गलियां याद आतीं हैं
वो गलियां मेरे गांव की जहां
पहचान मेरी पापा से है
वो गलियां मेरे गांव की जहां
की शान मेरे पापा से है