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11 Jul 2018 · 2 min read

वो किधर से गए?

वो इधर से आए व उधर से गए

ढ़ूढ़ते रह गए वो किधर से गए ?

आए बनाने और बिगड़ कर गए

साथ अपने दो-चार लेकर गए

***

उनके जाते हमारे घर जल गए

हमारे मुसीबत के पल बढ़ गए

कुछ और ऊंचाइयों पर चढ़ गए

कुछ नीचे गिरे और गिरते गए

***

शहर हमारे उनके गढ़ हो गए

इरादें उनके और सुदृढ़ हो गए

बोल बिगड़े और बिगड़ते गए

बोलते-बोलते वो बेसुरे हो गए

***

वो तो खाली आए भरकर गए

हाथ अपने हम मलते रह गए

न जाने क्या -क्या वो कर गए

जब वो गए हम देखते रह गए

***

गए तो बीज गहरे में बोकर गए

पुनः आकर पल्लवित कर गए

लहलहाने पर उल्लसित हो गए

काटी फ़सल प्रफुल्लित हो गए

***

जो कहना न था वो कहकर गए

हर बेतुकी बात को बुनकर गए

जज़्बात छुआ व अस्मिता छू गए

किस रिश्ते से वो फरिश्ते हो गए

***

जाते-जाते वो तो मुखर हो गए

बुद्धिमत्ता में आगे प्रखर हो गए

हम पीछे चले वो डगर हो गए

हम मुसाफ़िर वो सफ़र हो गए

***

हम कहीं के न वो शहर हो गए

साजिश में हम दर-बदर हो गए

वो फैलते रहे और कहर हो गए

हम सिकुड़ते रहे बदतर हो गए

***

जुर्म इतना वो जमानत हो गए

सज़ा पाते गए बगावत हो गए

नाम इतना कि सोहरत हो गए

हर ज़ुबां पे वो कहावत हो गए

***

हम डरे थे व डरे के डरे रह गए

वो निडर थे खड़े के खड़े रह गए

हम जीवित हो कर भी मर गए

वो मरे भी नहीं व अमर हो गए

***

–राममचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’

Language: Hindi
228 Views
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