” वो क़ैद के ज़माने “
याद आतें हैं अक्सर वो, क़ैद के ज़माने
वो, थालियों की लाइन
गैरों से दोस्तानें
सिसकती ज़िंदगियां
अनसुलझे अफसाने
वो, बेचैन रातें
क़ैदी, नये-पुराने
याद…………………
वो, बेबसी, ग़म, लाचारी
अल्फ़ाज़ो के तानें
उजड़ते घरौंदे
ज़द्द में अपने, बेगाने
वो, बनते,बिगड़ते
रिश्ते, नये-पुराने
याद…………………
वो, क़ैद मन की उलझन
अनगिनत फसाने
अश्कों से भरी आंखें
मुलाकाती ठिकाने
वो, छापे,तलाशी
अफसर, नये-पुराने
याद………………..
वो, क़ैदियों की संगत व
गुफ्तगू मनमाने
बिन बातों के लफड़े
लोग जानें अनजानें
वो, तन्हाई, दौरे
पचड़े, नये-पुराने
याद………………….
वो, पीपल की छईयां
दर्द के तराने
हंसी, ठिठोली, मस्ती
ज़ुल्म के दास्तानें
वो, तन्हाई दौरे
किस्से, नये-पुराने
याद…………………
वो, गाड़ियों में ठूंसन
पेशी के आने-जाने
बेरूख़ी, तंग नज़री
राहगीरों के तानें
वो, पेशी कराते
कोर्ट मुंशी, नये-पुराने
याद………………….
वो, क़ैदियों बढ़ती संख्या
टींस अन्दर खानें
दवाईयों का टोटा
रोज़-रोज़ के बहाने
वो,ड्यूटी से गायब”चुन्नू”
डाक्टर, नये-पुराने
याद………………….
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)