वो कहते हैं …
वोह कहते हैं की हमारे समाज में ,
शादी जन्म जन्म का बंधन नहीं।
एक कॉन्ट्रैक्ट है सौदा है बस !
इसके अलावा कुछ भी नही ।
निभ गई खुशी से तो निभ गई ,
वरना बंधे रहने की मजबूरी नहीं।
तीन बार तलाक और फिर मुक्ति,
इसके बाद कोई परस्पर लेन देन नही ।
तो अगर मर्दों को है यह अधिकार ,
तो क्यों औरतों को हक नही ।
वोह भी हो सकती है तुम से नाखुश ,
उन्हें तीन बार तलाक कहने का हक क्यों नही ?
वोह क्यों गुजरे हलाला जैसे अपमान से ,
सजा वोह बेकसूर क्यों भुक्ते तुम क्यों नही ?
गर दे सकते सम्मान और प्यार नही ,
तो उस पर भी कोई रिश्ते का बोझ नहीं ।
और तुम तो घूमों आजाद खुले सांड की तरह ,
ढूढने फिर कोई शिकार कही ।
और वोह क्यों घुट घुट के जिए जीवन ,
तलाक उसके लिए बन जाए दंश ।नही !!
नहीं ! कभी नही ! उसे भी हक होना चाहिए ,
नया सुयोग्य जीवन साथी ढूढने का ,
जो हो कम से कम तुम जैसा तो बिल्कुल नही ।
और वोह काला बुर्का भी क्यों पहन के रखे ,
खुल के सर उठा के चले आजादी से ,
क्यों की शर्म तहजीब में होती है नकाब में नहीं ।