वो कविताचोर है
वो कविताचोर है कहकर न ढाओ ज़ुल्म वंदे पर।
असर प्रतिकूल होता है, किसी सज्जन के धंधे पर।
अगर औलाद है कविता, रहे स्वच्छंद यह अच्छा।
कभी मम्मी की गोदी में, कभी डैडी के कंधे पर।।
© नंदलाल सिंह ‘कांतिपति’
वो कविताचोर है कहकर न ढाओ ज़ुल्म वंदे पर।
असर प्रतिकूल होता है, किसी सज्जन के धंधे पर।
अगर औलाद है कविता, रहे स्वच्छंद यह अच्छा।
कभी मम्मी की गोदी में, कभी डैडी के कंधे पर।।
© नंदलाल सिंह ‘कांतिपति’