वो कपटी कहलाते हैं !!
, वो कपटी कहलाते हैं !!
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दुनियां में कुछ ऐसे भी जो,
दिन में दिये जलाते हैं।
कहते हैं हम ही वह जन जो,
सब को राह दिखाते हैं !!
अपनी शेखी खुद ही कर-कर,
हँस-हँस जो बतलाते हैं !
अपना मान बढ़ाते स्वयं ही,
लम्बा तिलक लगाते हैं !!
अंधों में हो काना राजा,
एक कहावत चल आयी !
सीधे-सादे इंसानों को –
ठग-ठग लाभ उठाते हैं !!
अगला जन्म सुखी हो जाये ,
यह कह दान कराते हैं !
निर्धन को दो दान न कहते-
खुद झोली भर लाते हैं !!
नारी तो नर की दासी है ,
इन के शास्त्र बताते हैं !
चरणामृत जो नारी चखती-
मोक्ष मिले बतलाते हैं !!
माँ की पूजा तक ना करते,
मूर्ति पूज हर्षाते हैं !
भोले इंसानों को छल-छल-
परिश्रम बिन पल जाते हैं !!
ईश्वर सब को देख रहा है,
ऐसा भ्रम फैलाया है !
पाप-पुन्य का वो निर्णायक,
मृत्यु परे बतलाते हैं !!
मानव कौन कौन दानव है,
सिद्ध करें अब आओ हम !
खुद ही कहे करे ना खुद जो –
वो कपटी कहलाते हैं !!
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मौलिक चिंतन
स्वरूप दिनकर, आगरा