Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jul 2024 · 4 min read

वो एक रात 11

वो एक रात 11
सदासुख की हालत देखकर कोई भी कह सकता था कि वह बदहवास होकर भागा जा रहा है। सदासुख कई लहलहाते खेतों को पार करता हुआ आखिरकार उस रहस्यमयी बापू टीला, भूमि से उठी हुई जमीन जो भयानक जंगलों से युक्त थी, पर पहुँच गया। और संभवतः उसकी मंजिल भी यही थी। उसने चारों ओर देखते हुए उन भयानक जंगलों में प्रवेश किया। बहुत बडे़ बडे़ पेड़ घनी शाखाओं से युक्त विशाल दानव की तरह लगते थे।
सदासुख उस जंगल रूपी सुरंग में घुसता ही जा रहा था कि अचानक एक लहराती भयंकर आकृति ने उसका रास्ता रोक लिया।
लेकिन ये क्या… सदासुख उसे देखकर भयभीत तो हुआ परंतु इतना नहीं…. ऐसा लगता था जैसे वो एक दूसरे से परिचित हों।
थोड़ी ही देर में वह उस भयंकर आकृति के पीछे-पीछे था। अचानक उस भयंकर आकृति ने एक जगह से पत्तों के ढेर को अपनी फूंक से हटाया। वहाँ एक गहरा गड्ढा दिखाई दिया… उसने सदासुख को इशारा किया और वह तुरंत उस गड्ढे में कूद गया।वह भयंकर आकृति भी उसके पीछे-पीछे उस गड्ढे में दाखिल हो गई। आश्चर्य…… उनके गड्ढे में कूदते ही उस गड्ढे के ऊपर फिर से पत्तों का एक ढेर बन गया।
काफी अँधेरी तंग गुफा थी वह….. चलते-चलते वह गुफा चौड़ी होती गई…. और आगे चलने पर वह रौशन भी होती जा रही थी। जगह जगह उस भयंकर आकृति जैसी कई आकृतियाँ वहाँ मौजूद थी… मानो वे पहरा दे रही हों। सदासुख के शरीर में ठंडी सर्द सी सिहरन दौड़ जाती थी।
“और थोड़ी देर में उस सुरंग में एक द्वार आया…. जहाँ से
भयंकर आकृति पीछे हट गई और सदासुख अंदर दाखिल हो गया।
सामने कोई विराजमान था, जो एक चबूतरे पर बैठा था। वहाँ का वातावरण काफी ठंडा और दहशत से भरा था। एक अजीब सी गंध वातावरण में फैली हुई थी। बहुत बडे़ बडे़ परंतु बिखरे हुए बाल थे उसके। अचानक सदासुख गिड़गिडा़ने लगा…..
“उन मासूम बच्चियों को छोड़ दो…. मेरे लालच की सजा उन्हें मत दो।”
अचानक वह साया पलटा…. ओह वह एक बुढ़िया थी…. जिसके तिरछे और उबड़ खाबड़ गंदे दाँतों को देखकर भय पैदा होता था। उसके हाथों में एक लकड़ी थी जो अजीब से आकार में थी।
“अह…. अह… हहहहह…. ” अजीब सी हँसी वह।
“भयंकरी… इतनी आसानी से अपने हाथ आए शिकार को नहीं छोड़ती। सदियों का सिलसिला है ये… जो चलता जा रहा है….लेकिन… अह…. अह…. हहहहहह…. अब पूरा होकर ही रहेगा…. ” अपने भयंकर दाँतों को पीसती हुई भयंकरी सदासुख के पास जा पहुँची..तुझे अभी चार और लड़कियों का प्रबंध करना होगा…. वरना हकूरा का अकूत खजाना तुझे नहीं मिलेगा…. ।
टूट गया सदासुख….. “नही चाहिए मुझै कोई खजाना…. लालच में आ गया था मैं…. बहराम ने मुझे फँसा दिया…. ऐसा न कर भयंकरी…” सदासुख अपने घुटनों पर झुक गया।
“नहीं….. तू तुच्छ मानव चाहता है कि अपनी तपस्या भंग कर दूँ….सैकड़ों वर्षों से सजाया ख्वाब अब तोड़ दूँ…. नहीं”…. चिल्लाई भयंकरी…. “इन लड़कियों के रक्त से स्नान कर भूपा के कुंड में समाते ही मैं धूमावती की शक्तियों को चुनौती दे पाऊँगी…. ”
शून्य की ओर निहारती हुई भयंकरी रौद्र होकर चिल्लाई…. “मुझसे मेरा पद छीन लिया तूने धूमावती….. वरना आज लोग मेरी पूजा करते….. माता कालखा का कवच भी तुझे मिल गया…. नहीं….. धूमावती…. देख तेरे क्षेत्र में ही आ गई हूँ मैं….. एक बार भूपा के कुंड में समा जाऊँ….. फिर मैं तुझे यहीं तेरे क्षेत्र में ही तेरे भक्तों के सामने ही…. पराजित करूँगी…… तेरा वध करूँगी मैं…. ह…. हहहहह…. ”
भयंकर लग रही थी… भयंकरी….. सदासुख की टाँगें काँप रही थी।
उधर………
सदासुख को ढूँढते ढूँढते गाँव वाले बापू टीला के जंगलों तक आ चुके थे। और फिर….
“रुको गाँव वालो…. “दाताराम बोले। “हम सभी जानते हैं…. कि ये जंगल शापित हैँ… इनमें अंदर प्रवेश करना खतरे से खाली नहीं होगा… और इतने बडे़ जंगल में हम सदासुख को कहाँ ढूँढेंगे…. हो सकता है जंगल के अंदर कोई मुसीबत हम पर टूट पडे़। हमें सोच समझकर ही जंगल में प्रवेश करना होगा।” और फिर दाताराम एक पेड़ के नीचे खडे़ होगए और गाँव वाले उन्हें चारों तरफ से घेरकर खडे़ हो गए।
********************************************फादर क्रिस्टन साधु बाबा को एकटक देखे जा रहे थे। साधु बाबा मंदिर के आँगन में माता भवानी के सामने पालथी मारकर आँख मूँदे हाथ में रुद्राक्ष की माला लिए कुछ बुदबुदाए जा रहे थे। फादर भयभीत थे। किस मुसीबत में फँस गए थे आज वे। कई वर्षों से आना-जाना था लेकिन ऐसा तो उनके साथ कभी हुआ ही नहीं था। फिर उन्होंने सोचा इतनी देर रात घर के लिए वे चर्च से कभी निकले भी नहीं थे। उन्होंने दोबारा बीती घटनाओं पर गौर किया…. बेचारी लड़की का कितना बुरा हाल किया शैतानों ने। अगर वे खुद उन भयंकर आकृतियों के हत्थे चढ़ जाते तो…….. यही सोचकर उनके शरीर ने एक झुरझुरी सी ली।
तभी उन्हें साधु बाबा की कही गई बात याद आ गई….. इतनी आसानी से डंकपिशाचिनी अपने शिकार का पीछा नहीं छोड़ती। यह याद आते ही फादर भय से काँप गए। आज उन्हें रात बड़ी लंबी लग रही थी। उन्होंने मंदिर की घंटी निहारी… अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे। साधु बाबा के अनुसार अभी वे डंकपिशाचिनियाँ यहीं कहीं आसपास ही थीं। तभी बाहर से एक भयानक आवाज सुनाई दी…..
हूँ…. आआआआआआआआ…. हूँ…….. फादर उछल पडे़…… इतनी भयंकर आवाज किस जानवर की हैँ!
“फादर……. ये आवाजें डंकपिशाचिनियों की हैँ…….. इसका अर्थ हैँ कि वे आसपास ही हैं। ध्यान रखना….. उनकी नजरों से बचो। वरना वे मंदिर में आने कीपूरी कोशिश करेंगी……. दैविक शक्तियाँ पूर्ण रूप से सुषुप्तावस्था में हैं इस समय…… ” साधु बाबा ने आँखें खोलकर फादर को समझाया।
फादर ने केवल गरदन हिलाकर स्वीरोक्ति दी। उधर…….. डंकपिशाचिनियों ने पेड़ से उतरना शुरू किया और मंदिर के चारों ओर घूम रही थीं। इतना तो वे जानती ही थी कि उनके शिकार मंदिर के अंदर हैं………… ।
सोनू हंस

Language: Hindi
63 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
★लखनवी कृषि को दीपक का इंतजार★
★लखनवी कृषि को दीपक का इंतजार★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
ताल-तलैया रिक्त हैं, जलद हीन आसमान,
ताल-तलैया रिक्त हैं, जलद हीन आसमान,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आग का जन्म घर्षण से होता है, मक्खन का जन्म दूध को मथने से हो
आग का जन्म घर्षण से होता है, मक्खन का जन्म दूध को मथने से हो
Rj Anand Prajapati
हिरख दी तंदे नें में कदे बनेआ गें नेई तुगी
हिरख दी तंदे नें में कदे बनेआ गें नेई तुगी
Neelam Kumari
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
बिगड़ता यहां परिवार देखिए........
SATPAL CHAUHAN
लेखक होने का आदर्श यही होगा कि
लेखक होने का आदर्श यही होगा कि
Sonam Puneet Dubey
मन का चोर अक्सर मन ही बतला देता,
मन का चोर अक्सर मन ही बतला देता,
Ajit Kumar "Karn"
संस्कृति
संस्कृति
Abhijeet
ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी को ढूँढते हुए जो ज़िन्दगी कट गई,
ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी को ढूँढते हुए जो ज़िन्दगी कट गई,
Vedkanti bhaskar
4620.*पूर्णिका*
4620.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मेरी प्रिय हिंदी भाषा
मेरी प्रिय हिंदी भाषा
Anamika Tiwari 'annpurna '
नया साल लेके आए
नया साल लेके आए
Dr fauzia Naseem shad
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
ऐसे रूठे हमसे कि कभी फिर मुड़कर भी नहीं देखा,
ऐसे रूठे हमसे कि कभी फिर मुड़कर भी नहीं देखा,
Kanchan verma
डॉ. नामवर सिंह की दृष्टि में कौन-सी कविताएँ गम्भीर और ओजस हैं??
डॉ. नामवर सिंह की दृष्टि में कौन-सी कविताएँ गम्भीर और ओजस हैं??
कवि रमेशराज
विकास की जिस सीढ़ी पर
विकास की जिस सीढ़ी पर
Bhupendra Rawat
कॉफ़ी हो या शाम.......
कॉफ़ी हो या शाम.......
shabina. Naaz
..
..
*प्रणय*
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
रखें बड़े घर में सदा, मधुर सरल व्यवहार।
आर.एस. 'प्रीतम'
I may sound relatable
I may sound relatable
Chaahat
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग..... मिलन की चाह
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग..... मिलन की चाह
Neeraj Agarwal
बेटी को पंख के साथ डंक भी दो
बेटी को पंख के साथ डंक भी दो
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
सर्वनाम के भेद
सर्वनाम के भेद
Neelam Sharma
बढ़े चलो तुम हिम्मत करके, मत देना तुम पथ को छोड़ l
बढ़े चलो तुम हिम्मत करके, मत देना तुम पथ को छोड़ l
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
*एक चूहा*
*एक चूहा*
Ghanshyam Poddar
जीवन
जीवन
लक्ष्मी सिंह
मुस्कानों पर दिल भला,
मुस्कानों पर दिल भला,
sushil sarna
" नई चढ़ाई चढ़ना है "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
शीर्षक- तुम बनाओ अपनी बस्ती, हमसे दूर
शीर्षक- तुम बनाओ अपनी बस्ती, हमसे दूर
gurudeenverma198
"पाठशाला"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...