वो एक रात 11
वो एक रात 11
सदासुख की हालत देखकर कोई भी कह सकता था कि वह बदहवास होकर भागा जा रहा है। सदासुख कई लहलहाते खेतों को पार करता हुआ आखिरकार उस रहस्यमयी बापू टीला, भूमि से उठी हुई जमीन जो भयानक जंगलों से युक्त थी, पर पहुँच गया। और संभवतः उसकी मंजिल भी यही थी। उसने चारों ओर देखते हुए उन भयानक जंगलों में प्रवेश किया। बहुत बडे़ बडे़ पेड़ घनी शाखाओं से युक्त विशाल दानव की तरह लगते थे।
सदासुख उस जंगल रूपी सुरंग में घुसता ही जा रहा था कि अचानक एक लहराती भयंकर आकृति ने उसका रास्ता रोक लिया।
लेकिन ये क्या… सदासुख उसे देखकर भयभीत तो हुआ परंतु इतना नहीं…. ऐसा लगता था जैसे वो एक दूसरे से परिचित हों।
थोड़ी ही देर में वह उस भयंकर आकृति के पीछे-पीछे था। अचानक उस भयंकर आकृति ने एक जगह से पत्तों के ढेर को अपनी फूंक से हटाया। वहाँ एक गहरा गड्ढा दिखाई दिया… उसने सदासुख को इशारा किया और वह तुरंत उस गड्ढे में कूद गया।वह भयंकर आकृति भी उसके पीछे-पीछे उस गड्ढे में दाखिल हो गई। आश्चर्य…… उनके गड्ढे में कूदते ही उस गड्ढे के ऊपर फिर से पत्तों का एक ढेर बन गया।
काफी अँधेरी तंग गुफा थी वह….. चलते-चलते वह गुफा चौड़ी होती गई…. और आगे चलने पर वह रौशन भी होती जा रही थी। जगह जगह उस भयंकर आकृति जैसी कई आकृतियाँ वहाँ मौजूद थी… मानो वे पहरा दे रही हों। सदासुख के शरीर में ठंडी सर्द सी सिहरन दौड़ जाती थी।
“और थोड़ी देर में उस सुरंग में एक द्वार आया…. जहाँ से
भयंकर आकृति पीछे हट गई और सदासुख अंदर दाखिल हो गया।
सामने कोई विराजमान था, जो एक चबूतरे पर बैठा था। वहाँ का वातावरण काफी ठंडा और दहशत से भरा था। एक अजीब सी गंध वातावरण में फैली हुई थी। बहुत बडे़ बडे़ परंतु बिखरे हुए बाल थे उसके। अचानक सदासुख गिड़गिडा़ने लगा…..
“उन मासूम बच्चियों को छोड़ दो…. मेरे लालच की सजा उन्हें मत दो।”
अचानक वह साया पलटा…. ओह वह एक बुढ़िया थी…. जिसके तिरछे और उबड़ खाबड़ गंदे दाँतों को देखकर भय पैदा होता था। उसके हाथों में एक लकड़ी थी जो अजीब से आकार में थी।
“अह…. अह… हहहहह…. ” अजीब सी हँसी वह।
“भयंकरी… इतनी आसानी से अपने हाथ आए शिकार को नहीं छोड़ती। सदियों का सिलसिला है ये… जो चलता जा रहा है….लेकिन… अह…. अह…. हहहहहह…. अब पूरा होकर ही रहेगा…. ” अपने भयंकर दाँतों को पीसती हुई भयंकरी सदासुख के पास जा पहुँची..तुझे अभी चार और लड़कियों का प्रबंध करना होगा…. वरना हकूरा का अकूत खजाना तुझे नहीं मिलेगा…. ।
टूट गया सदासुख….. “नही चाहिए मुझै कोई खजाना…. लालच में आ गया था मैं…. बहराम ने मुझे फँसा दिया…. ऐसा न कर भयंकरी…” सदासुख अपने घुटनों पर झुक गया।
“नहीं….. तू तुच्छ मानव चाहता है कि अपनी तपस्या भंग कर दूँ….सैकड़ों वर्षों से सजाया ख्वाब अब तोड़ दूँ…. नहीं”…. चिल्लाई भयंकरी…. “इन लड़कियों के रक्त से स्नान कर भूपा के कुंड में समाते ही मैं धूमावती की शक्तियों को चुनौती दे पाऊँगी…. ”
शून्य की ओर निहारती हुई भयंकरी रौद्र होकर चिल्लाई…. “मुझसे मेरा पद छीन लिया तूने धूमावती….. वरना आज लोग मेरी पूजा करते….. माता कालखा का कवच भी तुझे मिल गया…. नहीं….. धूमावती…. देख तेरे क्षेत्र में ही आ गई हूँ मैं….. एक बार भूपा के कुंड में समा जाऊँ….. फिर मैं तुझे यहीं तेरे क्षेत्र में ही तेरे भक्तों के सामने ही…. पराजित करूँगी…… तेरा वध करूँगी मैं…. ह…. हहहहह…. ”
भयंकर लग रही थी… भयंकरी….. सदासुख की टाँगें काँप रही थी।
उधर………
सदासुख को ढूँढते ढूँढते गाँव वाले बापू टीला के जंगलों तक आ चुके थे। और फिर….
“रुको गाँव वालो…. “दाताराम बोले। “हम सभी जानते हैं…. कि ये जंगल शापित हैँ… इनमें अंदर प्रवेश करना खतरे से खाली नहीं होगा… और इतने बडे़ जंगल में हम सदासुख को कहाँ ढूँढेंगे…. हो सकता है जंगल के अंदर कोई मुसीबत हम पर टूट पडे़। हमें सोच समझकर ही जंगल में प्रवेश करना होगा।” और फिर दाताराम एक पेड़ के नीचे खडे़ होगए और गाँव वाले उन्हें चारों तरफ से घेरकर खडे़ हो गए।
********************************************फादर क्रिस्टन साधु बाबा को एकटक देखे जा रहे थे। साधु बाबा मंदिर के आँगन में माता भवानी के सामने पालथी मारकर आँख मूँदे हाथ में रुद्राक्ष की माला लिए कुछ बुदबुदाए जा रहे थे। फादर भयभीत थे। किस मुसीबत में फँस गए थे आज वे। कई वर्षों से आना-जाना था लेकिन ऐसा तो उनके साथ कभी हुआ ही नहीं था। फिर उन्होंने सोचा इतनी देर रात घर के लिए वे चर्च से कभी निकले भी नहीं थे। उन्होंने दोबारा बीती घटनाओं पर गौर किया…. बेचारी लड़की का कितना बुरा हाल किया शैतानों ने। अगर वे खुद उन भयंकर आकृतियों के हत्थे चढ़ जाते तो…….. यही सोचकर उनके शरीर ने एक झुरझुरी सी ली।
तभी उन्हें साधु बाबा की कही गई बात याद आ गई….. इतनी आसानी से डंकपिशाचिनी अपने शिकार का पीछा नहीं छोड़ती। यह याद आते ही फादर भय से काँप गए। आज उन्हें रात बड़ी लंबी लग रही थी। उन्होंने मंदिर की घंटी निहारी… अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे। साधु बाबा के अनुसार अभी वे डंकपिशाचिनियाँ यहीं कहीं आसपास ही थीं। तभी बाहर से एक भयानक आवाज सुनाई दी…..
हूँ…. आआआआआआआआ…. हूँ…….. फादर उछल पडे़…… इतनी भयंकर आवाज किस जानवर की हैँ!
“फादर……. ये आवाजें डंकपिशाचिनियों की हैँ…….. इसका अर्थ हैँ कि वे आसपास ही हैं। ध्यान रखना….. उनकी नजरों से बचो। वरना वे मंदिर में आने कीपूरी कोशिश करेंगी……. दैविक शक्तियाँ पूर्ण रूप से सुषुप्तावस्था में हैं इस समय…… ” साधु बाबा ने आँखें खोलकर फादर को समझाया।
फादर ने केवल गरदन हिलाकर स्वीरोक्ति दी। उधर…….. डंकपिशाचिनियों ने पेड़ से उतरना शुरू किया और मंदिर के चारों ओर घूम रही थीं। इतना तो वे जानती ही थी कि उनके शिकार मंदिर के अंदर हैं………… ।
सोनू हंस