वो एक मजदूर है
चिलचिलाती धूप भी जिसकी आंखों में झांक नहीं पाती ,
वो एक मजदूर है जिसके हिस्से में कभी छांव नहीं आती ,
वो थकता है ,
सांस लेता है ,
दो मिनट रुकता है ,
सोचता है अपनी जिंदगी के बारे में ,
जो कभी आसान नहीं हो पाती ,
वो एक मजदूर है जिसके हिस्से में कभी छांव नहीं
आती ,
हथौड़ी और छैनी की खटर-पटर ,
सुनाई देती है मुझे उस कमरे तक ,
जहां पंखा है,
छांव है ,
जिंदगी आसान है ,
फिर भी विचलित हूं ,
हैरान हूं ,
परेशान हूं ,
एक वो जो भार उठाए है जिम्मेदारियों का ,
मगर उसके चेहरे से मुस्कान नहीं जाती ,
वो एक मजदूर है जिसके हिस्से में कभी छांव नहीं
आती ।।