वो इज़्ज़त रास नही मुझको!
वो इज़्ज़त रास नही मुझको, भले ही भीख में स्वर्ण कटोरा हों।
वो इज़्ज़त रास नही मुझको, बेच इज़्ज़त को जिसे बटोरा हो।।
तलवे चाटने को तो तुमने, उतार सोने के जूतों को साज धरें।
वो इज़्ज़त रास नही मुझको, जो ले उसको सर हम ताज करें।।
पत्थर समझ ठोकरे लगाये, आज मुझको दिव्यमूरत बता रहे।
वो इज़्ज़त रास नही मुझको, तेरे सोच की हर सूरत जता रहे।।
तूँ प्यार में सम्मान गिराता क्यों, हमको मेहमान बताता क्यों।
वो इज़्ज़त रास नही मुझको, सरेआम अहसान दिखाता क्यों।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २४/१२/२०१९ )