वो आसमान में घर चाहता है
ज़िन्दगी बहुत बेहतर चाहता है
वो आसमान में घर चाहता है
मंज़िल कैसे मिल पाएगी उसे
वो आसान सा सफर चाहता है
कुछ फिक्रें नींद को थामे रहती हैं
कौन जागना रात भर चाहता है
उदासियों की रात लंबी हो गई
दिल उम्मीदों की सहर चाहता है
ये बंदिशें बुलंदियां छूने नहीं देती
परिंदा अब खुले हुए पर चाहता है
नफरतों की आग दूर ही रखो “अर्श”
चैन ओ अमन अब शहर चाहता है