वो आए थे हमसे मिलने
वो आए थे हमसे मिलने बातें तो करने
कुछ मेरी सुनने कुछ उनकी बुनने
वक्त की मजबूरियों ने बांध रखा
वरना कौन हमको कब रोक सका
हम मिल ना सके तुमसे
तुम हाल अपना बयां ना कर सके हमसे
तुम साथ हो तो कंकड़ भी पुष्प जैसे लगते हैं
जो तुम दूर तो पुष्प भी कांटों की तरह चुभने लगते हैं
मेरे ना होने से दिन तो तुम्हारा भी नहीं डालेगा
तुम दीपक मैं बाती इन बिन फिर दिप कैसे जलेगा
तुम रूप में तुम्हारी अनुक्रती
पंख पखेरू उड़ा आऊँ बस तुम्हारी हो स्वीकृति
रचियता मंगला केवट होशंगाबाद मध्य प्रदेश