वो अगर चाहे तो आगे भी निकल जाऊँगा
वो अगर चाहे तो आगे भी निकल जाऊँगा
गिर गया हूँ मैं मगर फिर भी सम्भल जाऊँगा
मैं तो सहराओं में आया हूँ बिना पानी के
अब यही सांस हैं कुछ रोज़ तो चल जाऊँगा
मुझको ख़्वाहिश है यहाँ रहते हुए जन्नत की
माँ तेरी गौद में सर रख के बहल जाऊँगा
~अंसार एटवी