वो।
यूं तो सब से हर रोज़ है मिलता,
कभी कहीं खो जाता वो,
कभी हालात ने निवाला दूर किया,
कभी ख़ुद ही भूखा सो जाता वो,
जीवन लगता पहाड़ सरीखा,
कठिन इसकी चढ़ाई है,
हर घड़ी में है वो हंसता दिखता,
बस यही उसकी एक बड़ाई है,
गुज़रता वो अक्सर एक ही गली से ,
अच्छे घर का नज़र आता है,
हर सुबह बदलकर कपड़े अपने,
जाने किधर वो जाता है।
कवि-अंबर श्रीवास्तव।