वोट —————-
वोट सिर्फ वोट है न,है वज्र का कठोर धार।
सुबह के सूर्य सा है तीव्र,अस्त्र है इसे सम्हार।
भूख से उदर जले या प्यास से ये कंठ द्वार।
ओठ की हँसी बुझी हो ध्वस्त हो या देहरी द्वार।
वोट डाल,दान दे न, कल को कर असीम प्यार।
कल तेरा उठे न रो, एक तेरे भूल से,देख यार।
यह वज्र है प्रहार कर प्रहार कर बहादुरो।
आचरण जो भ्रष्ट है विनष्ट कर बहादुरो।
वोट को विवेक से बुद्धि से प्रयोग कर।
नाम,जाति,धर्म को न वोट से दे योग कर।
बहुत तेरे विहान को है कैद में इसने रखा।
धुंध,कोहरे,अन्हार में बहुत-बहुत फंसा रखा।
जो किया था वो गया न सिर धुनो बहादुरो।
देख यह महान कल है अब गुणो बहादुरो।
तुम्हें है न्याय चाहिये तुम्हें विकास चाहिए।
पीढ़ियों के वास्ते हर विश्वास तुमको चाहिये।
अमनुज के सोच पर,कुविचार पर प्रहार कर।
विचार शून्य बैठकर,रहो न चुप प्रहार कर।
तुम्हें जो न्याय दे सके वह तो है प्रजा का तन्त्र।
रख इसे अत:अक्षुण्ण तभी सकोगे रह स्वतंत्र।
यदि कोई बना रहा हो सोचता हो राजतन्त्र।
‘मत’ तुम्हें तो वज्र है कर उसे दे आज अंत।
अगर बपौती कर रहा हो,रुक न थम न सोच कर।
‘मत’ में शक्ति है अमित इसे विखंड,खंड कर।
समानता का रण चुनाव, अवसरों का है भविष्य।
समाज को सुदिशा मिले ‘मत’ का यूँ कर हविष्य।
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