वोटों की फसल
प्रजातंत्र के खेत में, फसल खड़ी तैयार
कुशल चैतुए आ गए, ले ले कर औजार
कोई जाति धर्म से काट रहा, अगड़े पिछड़ों में बांट रहा
कोई शब्द बाग दिखलाता है, कोई नाटक नया बनाताहै
एक सांप एक नागनाथ है, तीजे तो इनके भी बाप हैं
कोई शगूफा छोड़ रहा है, कोई थोते मुद्दे ढूंढ रहा है
फसल वही ले जाएगा जिसका हथकंडा चल जाएगा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी