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11 Feb 2021 · 1 min read

वो~अब बदल गई होगी

उसे सामने बिठाकर मैं, कुछ सपने सजाता रहता था
वो भी खिलखिलाती और मैं भी मुस्कुराता रहता था
मगर ये फ़साना महज़ गुजरा ज़माना था
अब वो थोड़ा संभल गई होगी
मुझसे बिछड़ने के बाद वो, अब बदल गई होगी
वैसे भी कुछ नहीं था मेरे पास, जो खुश रखता उसे
बस मोहब्बत, मोहब्बत और मोहब्बत करता उसे
मगर अब वो समझने लगी है कुछ कुछ
रख के कोरे कागज़ पर, कलम गई होगी
मुझसे बिछड़ने के बाद वो, अब बदल गई होगी
वैसे भी कौन था अपना, उसकी फ़िक्र करने वाला
झूठी तारीफें और कहाँ से लाता उसका ज़िक्र करने वाला
वो सर्कस में इस जोकर से, आगे निकल गई होगी
शायद बिछड़ने के बाद वो, अब तक बदल गई होगी
… भंडारी लोकेश ✍️

3 Likes · 4 Comments · 334 Views
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