वैसा न रहा
जैसा था जो, अब वैसा न रहा
हर बात का अब एक अर्थ न रहा।
हर बात का मतलब अलग
हर किसी के लिए,
रिश्तों के भी मायने अलग
हर किसी के लिए।
बदल चुका है हर इंसान
खो चुका है वो अपना ईमान।
बंटने लगा हैं सब क्या रंग और क्या भगवान।
न जाने क्या होगा इस सबका अंजाम?
लड़ते रहते हैं सब बिना बात पर।
बंटने लगते हैं सब हर बात पर।
सियासी अब हर एक बात है
बदल चुका अब माहौल है।
न जाने क्या हुआ है इस जहान को
भूल गए हैं सब वसुधैव कुटुंबकम् के ज्ञान को।
पता नहीं ऐसा क्या हुआ है?
जैसा था जो वैसा नहीं रहा है।
– श्रीयांश गुप्ता