वैश्या का दर्द भरा दास्तान
मेरे जीवन की कहानी,
दुख से ही शुरू हुई है।
क्या कहूँ आज जो मैंने
अब तक कभी किसी से
कहीं नहीं हैं।
अँधेरा है जीवन मेरा ।
अँधेरे में ही रहने दीजिए।
प्रकाश न लाइये चेहरे पर ,
अब रोशनी से डर लगने लगा है ।
मैंने अपने दर्द को
कब से सुला रखा है,
जगाईयें नही अभी उसे
सोते ही रहने दीजिए।
जग गया तो दर्द का
सेलाब यहाँ आ जाएगा।
फिर कहाँ मेरा यह झूठा
अस्तित्व रह जाएगा।
चेहरे पर ऐसे ही चमक
बने रहने दीजिए।
मेरे मन के दर्द को
आप मत छेड़िये ।
उसको मेरे चेहरे पर
आने नहीं दीजिए।
यहाँ जिस्म के सौदागर आते है।
मन का नही।
मन को दर्द में ही डूबे रहने दीजिए।
चेहरे पर ऐसे ही झूठी हँसी
दिखने दीजिए।
यहाँ जिस्म से प्यार
करने वाले आते हैं।
मन को प्यार
की आदत मत डालियें।
मैं वैश्या हूँ !
मुझे वैश्या रहने दिजिए।
अब उम्मिदे नहीं है ,
आप से सम्मान पाने की।
मैं तिरस्कृत हूँ !आपके समाज से ,
मुझे तिरस्कृत ही रहने दिजीए।
मुझे याद नहीं है कि
किसने मुझे यहाँ लाकर छोड़ा था।
पर दुख इस बात की है कि,
माँ – बाप ने भी मुझे
कहाँ अपनाया था।
मेरी कोई पहचान नही है
अब पहचान मत दीजिए।
मैंने अपना नाम बहुत पीछे
छोड़ आई थी।
अब मुझे कोई नाम मत दीजिए ।
मैं वेश्या हूँ!
मुझे वेश्या ही बुलाईयें।
मैने अगर अपना मुँह खोल दिया,
तो कहाँ आपका
मान-सम्मान बच पाएगा?
और आपका यह झूठा शान
समाज कैसे देख पाएगा।
मैं तो आती नहीं किसी के घर,
घर तोड़ने के लिए।
वे तो जिस्म के सौदागर ही है,
जो आ जाते मुझे यहाँ ढूँढ़ने के लिए।
फिर वह शक्स समाज में जाकर,
सम्मानित हो जाता है,
और मैं कोठे पर बैठ कर
कोठे वाली बन जाती हूँ ।
फिर उन्हीं लोगो के तिरस्कृत
नजरो से बचने के लिए ,
मैं अंधेरे में छिप जाती हूँ।
मूझ में भी उठे कई बार ऐसे आग।
जाके समाज को आईना दिखा दूं
और उसे बता दूं।
में गलत कल भी नही थी
और आज भी नही हूँ ।
वों तो आप ही हैं जिसने मुझे,
इस कोठे पर बैठाया है ।
अगर आप यहाँ आते नहीं,
तो मैं इस दल- दल से बची रहती।
फिर किसी की माँ ,पत्नी
और बेटी मैं भी बनी रहती ।
फिर इस समाज में
मेरी भी अपनी पहचान होती
और आज मैं वैश्या न होती।
~अनामिका