वैविध्यपूर्ण भारत
कोस – कोस पर बदले पानी,
चार कोस पर बदले वानी।
है पुरातन संस्कृति अपनी,
विश्व भर में जानी – मानी।
देते संदेशा विश्व – प्रेम का, पढ़ाते
अनेकता में एकता का पाठ।
फूल सभी अलग-अलग रंगों के,
पर गुलदस्ते के तुम देखो ठाठ।
अलग बोली है, अलग भाषा है।
अलग ही है वेशभूषा सभी की।
पर पुकार पर भारत माता की,
आते एक साथ सभी।
बाहर के शत्रु से तो हम सभी,
एक होकर लड़ लेंगे।
पर करें खोखला जो देश को
भीतर से, उनका क्या कर लेंगे?
हे ! भारत मां के सपूतों,
तुम न यूं आपस में लड़ो।
रहो खड़े एक साथ ही
बढ़े देश, तुम भी बढ़ो।