वैराग्य ने बाहों में अपनी मेरे लिए, दुनिया एक नयी सजाई थी।
स्याह रात एक दिन, बारिश में लिपटकर आयी थी,
मीलों तक फैले थे सन्नाटे, बस बूंदों की आवाजें सोये पत्तों से टकराई थी।
खुशबू थी बौछारों की या, उपवन में आशाएं मन की कुम्हलायीं थी,
नींदों की थी उलझनें और, चैन ने करवटों से की दुहाई थी।
सिरहाने रखी यादों ने, ज़हन के दरवाजे पर दस्तकें लगायीं थी,
ये नशा था जज्बातों का या, आग ये सावन ने जलायीं थी।
हवाओं में बहती मोहब्बत, खिड़कियों पर आज ठहर आयीं थी,
शून्य में डूबे एहसासों की, बेहोशी कुछ ऐसे छटपटाई थी।
वो वादों-इरादों की किताबें, जो चिता में तेरे रख आयी थी,
जाने कैसे उन पन्नों की स्याही, इस बारिश ने हाथों पर गिरायी थी।
तेरी आहटों की कल्पना में, साँसें मेरी मुस्काई थी,
यथार्थ से कोसों दूर की, ये मृगतृष्णा मुझे अब भायी थी।
सपनों की दुनिया, टूटे आईने की कैद में समायी थी,
किस हिस्से पर रिहाई लिखूं, ये बात समझ नहीं आयी थी।
किस्मत की सदायें, जन्मों की वादियों में गुनगुनायी थी,
अधूरी रूह की लहरों संग बहती हुई, मौत में हुई विदाई थी।
पलकें भींगी थी चाहतों में, यूँ आंधी बारिश में सिमट कर आयी थी,
वैराग्य ने बाहों में अपनी मेरे लिए, दुनिया एक नयी सजाई थी।