वैदेही वनवास
वैदेही वनवास गई।
विकल हुए सब जीव अवध के
महा विपत्ति भई ।।
दशरथ नृप अरु भरत रिपुदमन
कौशिल्यादि सब रानी ।
तीनहुँ भगनि परि पुरजन ज्यों
व्यथित मीन बिनु पानी ।।
कुसुम पुञ्ज मुरझाए उपवन
जिमि तुषार के मारे।
शुष्क हुए तरु पत्र लताएं
तीव्र अगनि सी जारे ।।
पशु पक्षी गण मौन हो गए
कुघरी आन ठई ।
वैदेही वनवास गई ।।
नगरी अवध कांति खोई सब
विषधर मणि ज्यों त्यागी ।
पुष्पित फलित वनों पर जैसे
अति दावानल लागी ।।
श्री हीन सम्पद सुख , दुख में
बदल गए क्षण माहीं ।
छटपटात सब जीव अधीरे
पल पल इत उत जाहीं ।।
चौदह वर्ष वनवास सहित कई
विधि गति नई नई ।
वैदेही वनवास गई ।।