Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Aug 2024 · 4 min read

*वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है:

वैदिक संस्कृति एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है: स्वामी अखिलानंद जी सरस्वती
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
त्रि-दिवसीय श्रावणी पर्व आर्य समाज मंदिर, पट्टी टोला, रामपुर में 26, 27, 28 अगस्त 2024 को मनाया जा रहा है । प्रथम दिन महा-उपदेशक स्वामी अखिलानंद जी सरस्वती के उपदेश प्रबुद्ध-जनों को श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप गुरुकुल महाविद्यालय पुष्पावली, पूठ, गढ़मुक्तेश्वर, हापुड़ से पधारे हैं। गंभीर वाणी में प्रवचन करते हैं। एकाग्र चित्तता से उपदेश श्रवण करने का आपका आग्रह रहता है । गंभीर विषयों पर वैचारिक दृढ़ता से प्रकाश डालना आपकी विशेषता है।

आपने बताया कि श्रावणी पर्व चार माह का रहता है। यह आषाढ़ पूर्णिमा से आरंभ होता है। इस दिन को गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं। प्राचीन काल में इस दिन ज्ञान के पिपासु-जन गुरु के आश्रम में उन्हें प्रणाम करने के लिए जाते थे। आषाढ़ की पूर्णिमा से ही चातुर्मास आरंभ हो जाता है। यह चार महीने चलता है। यह वर्षा काल होता है। आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य गुरुदेव को आश्रम की कुटी से गृहस्थ-जनों के बीच गॉंव-कस्बे-शहर में लाकर किसी प्रकार सुरक्षित ढंग से निवास कराना होता है। ताकि गुरुदेव के रहने में वर्षा की बाधा न पड़ने पाए। यह चार महीने धर्म-लाभ के बन जाते हैं।

गुरुदेव से उपदेशों के श्रवण के कारण माह का नाम श्रावण पड़ा। श्रावण अर्थात सावन का महीना आषाढ़ के तत्काल बाद आरंभ हो जाता है। सावन, भादो, क्वार और कार्तिक महीने में गुरुदेव गृहस्थ-जनों को धर्म के गूढ़ रहस्यों से अवगत कराते हैं। सावन अर्थात श्रावण की पूर्णिमा पर गुरु और शिष्य के बीच रक्षा-सूत्र का संबंध स्थापित होता है। इसी को विद्या-सूत्र भी कहते हैं।

श्रवण शब्द से श्रावण शब्द बना है। इस माह का उपयोग उत्तम उपदेश सुनने में किया जाए, इसलिए श्रावण शब्द की सार्थकता है । श्रावण मास में उपदेश सुनने के उपरांत भादो का महीना आता है। इसे भाद्रपद भी कहते हैं। नाम के अनुरूप यह माह अत्यंत कल्याणकारी सिद्ध होता है।
आश्विन माह का संबंध जीवन में धर्म तत्वों की गति को अश्व के समान दौड़ने वाला बना लेना है। कार्तिक का संबंध कीर्ति से है।
इस प्रकार जब कार्तिक मास समाप्त होने को आता है, तब चार दिन पहले देवोत्थान एकादशी आती है। इसको प्रचलित भाषा में देव जागना या उठना कहते हैं। दरअसल यह वह समय होता है, जब उपदेशक/गुरु गृहस्थियों के बीच से उठकर अपनी कुटी की ओर प्रस्थान करते हैं और वहॉं जाकर अध्यात्म-साधना में लीन हो जाते हैं।
स्वामी अखिलानंद जी ने श्रोताओं को बताया कि हर व्यक्ति के जीवन में तीन ऋण होते हैं। इन तीन ऋणों का भी क्रम है।

पहला ऋण देव-ऋण है। यह पंच तत्वों के प्रति है। यज्ञ के माध्यम से इस ऋण को व्यक्ति चुकाता है। यज्ञ में जो अर्पित किया जाता है, उसके प्रति मनोभाव यही रहना चाहिए कि इसमें मेरा कुछ नहीं है। इसी को इदं न मम् कहकर यज्ञकर्ता बार-बार दुहराता है । यह जो यज्ञ में अर्पित किया जाता है, वह न यज्ञकर्ता का रहता है, न अग्नि तक सीमित होता है। वह अग्नि से वायु में फैल जाता है । वायु से सूर्य, उसके उपरांत बादलों में, फिर पुनः पृथ्वी तक आकर वनस्पतियों के रूप में अंततः पुनः अग्नि में समा जाता है । जो यज्ञकर्ता है, उस पर नकारात्मक चीजें असर नहीं डाल पातीं।

स्वामी जी ने बताया कि कोरोना काल में उन्होंने निरंतर यज्ञ करते रहने की इसी शक्ति के बल पर कोरोना पर विजय पाई। कोरोना से मृत्यु को प्राप्त हुए शवों को भी अपने हाथों से छुए जाने के बाद भी वह रोग की चपेट में नहीं आ पाए। यह यज्ञ का बल था।

‌ दूसरा ऋण पितृ ऋण होता है। इसमें पिता और माता की जीवन काल में सेवा-सुश्रुषा की जाती है। आपने बताया कि सेवा का अर्थ तो सभी जानते हैं लेकिन सुश्रुषा कहीं अधिक जरूरी होती है। इसका अर्थ वृद्ध-जनों के पास बैठकर उनकी बातें सुनना होता है। जितनी धैर्य से हम उनकी बातें सुनेंगे तथा उनसे वार्तालाप करेंगे, उतना ही उन्हें प्रसन्नता भी होगी तथा हमें भी उनके सुदीर्घ अनुभवों को जानने का लाभ प्राप्त होगा । वृद्ध जन अथवा माता-पिता कम पढ़े-लिखे हो सकते हैं, कम बुद्धिमान भी हो सकते हैं, लेकिन उनके पास अनुभव की जो पूॅंजी है उसका मुकाबला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता ।

तीसरा ऋषि-ऋण है। इन तीनों प्रकार के ऋणों से व्यक्ति को सारा जीवन उऋण होने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । ब्रह्म की उपासना अत्यंत आवश्यक है।

26 अगस्त को भादों की अष्टमी होने के कारण कृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपने भगवान कृष्ण का विशेष रूप से स्मरण किया और कहा कि सुदर्शन-चक्रधारी, कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी, गोवर्धन पर्वत को उठाकर अनूठा संदेश देने वाले तथा गीता के महान ज्ञान के गायक योगेश्वर श्री कृष्ण का प्रतिदिन स्मरण करना हम सबका कर्तव्य है। आज कृष्ण के इस महान रूप का स्मरण न करना किसी प्रकार भी उचित नहीं है।
आपने आर्य समाज के कार्यक्रमों में चालीस वर्ष से कम आयु के श्रोताओं की संख्या बढ़ाने का आग्रह किया। भारत का सनातन गौरव मात्र 2024 वर्ष का नहीं है , यह एक अरब 96 करोड़ वर्ष से अधिक पुराना है-स्वामी अखिलानंद जी सरस्वती ने बताया।

कार्यक्रम के आरंभ में अलीगढ़ से पधारे भजन उपदेशक उधम सिंह जी शास्त्री ने आर्य समाज के मौलिक भजनों की प्रस्तुति से वातावरण बना दिया। आपने कहा:-

जगत में चिंता मिटी उन्हीं की, शरण में तेरी जो आ गए हैं

एक अन्य भजन के बोल थे:
मनमीत बसा मन में

कार्यक्रम के अंत में आर्य समाज के प्रधान श्री मुकेश रस्तोगी ने सभी का धन्यवाद दिया।
कार्यक्रम के अध्यक्षीय आसन का सम्मान प्रदान करने के लिए इन पंक्तियों का लेखक आर्य समाज का आभारी है।
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️
लेखक: रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

77 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

क़ाफ़िया तुकांत -आर
क़ाफ़िया तुकांत -आर
Yogmaya Sharma
मेरा डर..
मेरा डर..
हिमांशु Kulshrestha
ग़ज़ल _ मुहब्बत में बहके , क़दम उठते उठते ,
ग़ज़ल _ मुहब्बत में बहके , क़दम उठते उठते ,
Neelofar Khan
*पहले घायल करता तन को, फिर मरघट ले जाता है (हिंदी गजल)*
*पहले घायल करता तन को, फिर मरघट ले जाता है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
बसा के धड़कन में प्यार तेरा पलक भी सपने सजा रही है ।
बसा के धड़कन में प्यार तेरा पलक भी सपने सजा रही है ।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
साँझ- सवेरे  योगी  होकर,  अलख  जगाना  पड़ता  है ।
साँझ- सवेरे योगी होकर, अलख जगाना पड़ता है ।
Ashok deep
दुनिया एक दुष्चक्र है । आप जहाँ से शुरू कर रहे हैं आप आखिर म
दुनिया एक दुष्चक्र है । आप जहाँ से शुरू कर रहे हैं आप आखिर म
पूर्वार्थ
आओ मिलकर सुनाते हैं एक दूसरे को एक दूसरे की कहानी
आओ मिलकर सुनाते हैं एक दूसरे को एक दूसरे की कहानी
Sonam Puneet Dubey
दोहा त्रयी . . . .
दोहा त्रयी . . . .
sushil sarna
"सियार"
Dr. Kishan tandon kranti
मंज़र
मंज़र
अखिलेश 'अखिल'
पापा की परी
पापा की परी
भगवती पारीक 'मनु'
मेरा हिंदी दिवस
मेरा हिंदी दिवस
Mandar Gangal
मां
मां
Phool gufran
हवा तो थी इधर नहीं आई,
हवा तो थी इधर नहीं आई,
Manoj Mahato
*सरस्वती वंदना*
*सरस्वती वंदना*
Shashank Mishra
* जब लक्ष्य पर *
* जब लक्ष्य पर *
surenderpal vaidya
तस्वीर
तस्वीर
Rambali Mishra
माँ
माँ
Amrita Shukla
अपने वही तराने
अपने वही तराने
Suryakant Dwivedi
कुछ पल तेरे संग
कुछ पल तेरे संग
सुशील भारती
भगण के सवैये (चुनाव चक्कर )
भगण के सवैये (चुनाव चक्कर )
guru saxena
कान्हा को समर्पित गीतिका
कान्हा को समर्पित गीतिका "मोर पखा सर पर सजे"
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
#क़तआ (मुक्तक)
#क़तआ (मुक्तक)
*प्रणय*
നീപോയതിൽ-
നീപോയതിൽ-
Heera S
किसी सिरहाने में सिमट जाएगी यादें तेरी,
किसी सिरहाने में सिमट जाएगी यादें तेरी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बे-ख़ुद
बे-ख़ुद
Shyam Sundar Subramanian
उम्र तो गुजर जाती है..... मगर साहेब
उम्र तो गुजर जाती है..... मगर साहेब
shabina. Naaz
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
चरित्र साफ शब्दों में कहें तो आपके मस्तिष्क में समाहित विचार
Rj Anand Prajapati
तन पर हल्की  सी धुल लग जाए,
तन पर हल्की सी धुल लग जाए,
Shutisha Rajput
Loading...