वे मरनेवाले
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ये मरनेवाले वे हैं
जो
गर्मी में लू से मरते हैं।
या ठँढ में शीतलहर से।
भूख से मरनेवाले भी
और बिगड़ी बिमारियों से तथा।
हर मौसम तथा प्रतिकूलताएँ
मरने का मौसम है उनके लिए।
वे मरते हैं इसलिए नहीं कि
मौसम सर्द है या गरम
तन-मन बीमार है या
समय क्षुधा से क्षुब्ध ।
क्योंकि
सुरक्षित संदर्भ नहीं है उनके पास।
दरिद्रता का और दरिद्र कोख से
पैदा होने का खामियाजा
तो पड़ेगा ही भरना।
सुर्य या पृथ्वी
विनतियाँ नहीं सुनते।
उनके अपने विधान के दृढ़
संकल्प हैं।
मेरे लिए मनुष्य ही नहीं बदलते
अपना, शोषण का हठ।
सूरज या पृथ्वी का क्या?
ब्रह्माँड रचे जाने के नियम
अलग हैं।
वहाँ विनतियाँ नहीं चलतीं।
चलते हैं वहाँ सिर्फ नियम।
अलाव के पास बैठा तो भूख से
नहीं बैठा तो मरेगा ठंड से ।
वह,वह है
जहाँ नहीं होती जमापूँजी।
शरीर को काम में जोतकर।
कैसे बदल सकता है वह अपना माहौल!
ईमानदार कामों के कितने हैं दाम?
रोटी तो वस्त्र नहीं और
वस्त्र तो रोटी नहीं।
भरने के लिए हर आवश्यकता
रोटियाँ छोटी, और छोटी
की जाती है यहाँ।
क्षुब्ध ताप तथा क्रोधित ठंढ से
बचने का जुगाड़
है जिनके पास
क्या पता नहीं आपको
कौन लोग हैं वे।
उनहोंने त्रिदेव के नियम
तोड़े हैं बार-बार।
मानवीय धर्मसिद्ध ग्रंथों को
हित साधन हेतु पलटा है अनन्त बार।
त्रिदेव इसलिए बार-बार लेते रहे हैं
अवतार।
व्याख्याओं को करने पुनर्स्थापित।
वे नियमों से बचाव में
करते हैं प्राप्त दक्षता।
सामाजिक नियमों के अपहरण के जुगत में
सक्षम हैं।
वे सूरज को पीठ देने में हैं सक्षम।
क्योंकि तान रखा है उन्होंने
किसी के श्वेद का चादर।
हवा पर उड़ चलते हैं वे
क्योंकि,
बाँध रखे हैं किसीके इच्छाओं के वायदे।
बेचकर नैतिकता भिड़ाते हैं जुगत।
तौलकर बढ़ाते हैं व्यवहार।
आचरण पर चढ़ा रहता है वैयक्तिकता।
गिना करते हैं शासक के कद।
गणितीय सूत्रों में डालते हैं सत्ता के अंक।
उन्हें मनुष्य की विवशताओं का
होती है अच्छी समझ।
इस ठंढ भरे मौसम में कम्बल और
उस लू भरे गर्म हवाओं में जल का
फैलाना आता है जंजाल।
मरनेवाले वे हैं जो
चिथड़े पहने के माँ के गर्भ से
नग्न उतरकर नग्न ही रहते हैं
चाहे रोटी से चाहे वस्त्र से
छत से या मौलिक सुविधाओं से।
जबतक किसी ठंढ में या लू में
मर नहीं जाते।
उठो बदल अपना आचरण
युद्ध को हो तत्पर।
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