वे मधुर पल
बरसात के दिन जब आते हैं ,
बचपन की मीठी यादें साथ लाते हैं ,
वह दोस्तों के साथ बरसात में भींगते खेलना ,
गड्ढों के पानी को शरारत से एक दूसरे पर उलीचना,
कागज के नावों की वो दौड़ ,
एक दूसरे से आगे निकलने की वो होड़ ,
बागों में झूलों की वो सरसराहट ,
झूला झूलती लड़कियों की वो ठिठोली ,
उनकी वो खिलखिलाहट ,
गीले कपड़ों में घर वापस लौटना ,
आंगन , दालान को मिट्टी कीचड़ से गंदा करना ,
फिर मां , दादी की डांट फटकार सुनना ,
भीगी बिल्ली बने हुए ; सब अनसुना करना ,
बाल्टी भर पानी अभिषेक के बाद ,
कपड़े बदलने नंगे दौड़ना ,
सूखे कपड़े बदल ; पकौड़ी साथ चाय की वो चुस्कियां ,
दोस्तों संग धमाचौकड़ी वृत्तांत सुनाने की वो मस्तियां ,
मेरे हृदय पटल पर फिर दस्तक दे जाते हैं ,
वे मधुर पल मानस पटल में फिर लौट आते हैं।