वे दो लड़कियां
चिड़ियों-सी फुदकती, चहकती
स्कूटी पर सवार
जींस पहनकर
जा रही थीं
दो लड़कियां.
देख मेरा मन
प्रमुदित हुआ;
एक वह जमाना था-
जब लड़कियां
इस उम्र में थामी होतीं
मां का पल्लू या
घूंघट निकालकर
ससुराल में सुन रही होतीं
सास की झिड़कियां
ननद के ताने,
पतियों की फटकार.
हालांकि-
उनकी स्वतंत्रता को
डंसने अब भी मौजूद हैं
विषैले विषधर
दरिंदे
समाज के ठेकेदार.
अब भी
स्वस्थ समाज का
अवतरण है दूर
बहुत दूर…बहुत दूर
– 17 जनवरी 2013
शुक्रवार, रात्रि 1.30 बजे