वेश्या
दिन में उसकी गली बदनाम रहती है, रात को रहती है आबाद,
देकर चंद खुशियाँ दूसरों को अपनी जिंदगी कर रही है बर्बाद।
दूसरों के तन की भूख मिटाती है वो पेट की आग बुझाने को,
क्यों बनी वो वेश्या, कोई नहीं जानना चाहता है उसके हालात।
जो समाज के ठेकेदार कोसते हैं उसे वो ही जाते हैं उसके पास,
नोचते हैं उसके बदन को भूखे भेड़िये के जैसे सारी सारी रात।
जिसके कदमों को बताते हैं अपवित्र समाज के ठेकेदार अक्सर,
वो ही रात में गिर उनके कदमों पर करते हैं प्यार की फरियाद।
लगाते हैं उसकी मजबूरी में उसके तन का मोल ये ठेकेदार ही,
करके इज्जत को उसकी तार तार कहते हैं ये ही तेरी औकात।
इन शाहपुरुषों की महफ़िलों की रौनक बनती है वो अक्सर,
बाहों लेकर सोते वक़्त कोई नहीं पूछता मजहब और जात।
गंदी वो नहीं, गंदी है सोच तथाकथित समाज के ठेकेदारों की,
इतने चढ़ा रखे हैं मुखौटे चेहरे पर होती नहीं खुद से मुलाक़ात।
मर्दानगी उसके संग सोने में नहीं, उसे दलदल से निकालने है,
दूर करनी होगी मजबूरी उसकी, समझने होंगे उसके जज्बात।
उनके प्रति अपनी सोच बदलनी होगी हमें बदलाव लाने के लिए,
सुलक्षणा करके मान सम्मान उसका, करें हम एक नई शुरुआत।
©® #डॉ_सुलक्षणा_अहलावत