वेलेंटाइन डे की प्रासंगिकता
वेलेंटाइन डे की प्रासंगिकता
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करके विनष्ट संस्कार अपना हम,
यदि वेलेंटाइन डे मनाते हैं।
तो वेलेंटाइन की आत्मा को हम,
अतिघोर कष्ट पहुंचाते हैं।
अनीति व्यभिचार पसरा पश्चिम में,
वो प्रेम का महत्त्व बतलाते थे।
कहते थे जाकर भारत को देखो,
कैसे प्रेम में जीवन खपाते हैं ।
पशुओं सी जीवन शैली थी ,
दाम्पत्य बदहाल था व जीवन स्वछंद।
तन की लिप्सा में लिपटी खुशियाँ थी ,
दर्शन नहीं कोई ,बस क्षणिक आनंद।
वो तो थे संत ईसाई पादरी,
पर हुए चिंतित,देख युवा संस्कार।
प्रेम सप्ताह का आयोजन करवाया,
कहा, करो ना अब तुम व्यभिचार ।
लक्ष्य था उनका पश्चिम निर्मल हो ,
युवा वर्ग हो पूरब सा अक्लमंद ।
चौराहे पर उन्हें दे दी गई फांसी ,
जब खुले विचारों पर लगा पाबंद।
प्रेम अनुभूति में अनुयायी उनके ,
वेलेंटाइन डे सदियों से मनाते हैं।
कर याद उनके बलिदानों को ,
पावन प्रेम का गीत सुनाते हैं ।
इसके उलट भारत को देखो ,
कैसे वेलेंटाइन डे पर इतराते हैं।
उन पेड़ों को भी आती है लज्जा ,
जिस आड़ में कुकर्म रचे जाते हैं।
सोनागाछी जो था अतीत में ,
अब पग-पग पर बन जाते हैं।
वेश्यावृत्ति एप भी बन गया अब तो,
साजिश कर युवाओं को फँसातें हैं।
आती थी जिन शब्दों से लज्जा ,
खुलेआम जगह वो क्यूँ पाते हैं।
वेश्यावृति को नया नाम मिल गया,
लिव इन रिलेशनशिप कहलाते हैं।
बहनी थी जिस प्रेम की गंगा ,
वो कहीं नजर नहीं आते हैं।
वेलेंटाइन डे भारत के परिप्रेक्ष्य में,
अप्रासंगिक ही दिख जाते हैं ।
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०२ /२०२३
फाल्गुन ,कृष्ण पक्ष ,चतुर्दशी ,रविवार
विक्रम संवत २०७९
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