वेला है गोधूलि की , सबसे अधिक पवित्र (कुंडलिया)
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वेला है गोधूलि की , सबसे अधिक पवित्र (कुंडलिया)
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वेला है गोधूलि की , सबसे अधिक पवित्र
आती गाएँ लौटकर ,खिंचता अनुपम चित्र
खिंचता अनुपम चित्र ,समय संध्या का छाता
विदा ले रहा सूर्य ,रश्मि स्वर्णिम दे जाता
कहते रवि कविराय ,उपासक चला अकेला
भरे हृदय में मोद ,अहा ! अद्भुत क्या वेला
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गोधूलि वेला = जब गाएँ शाम को जंगल से लौटती हैं तो उनके पैरों से धूल उड़ती है, अतः वह समय गोधूलि वेला कहलाई। विवाह आदि मंगल कार्यों तथा ध्यान के लिए यह सर्वोत्तम समय है।
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451