वेधे जा हर विषाद !
वेधे जा हर विषाद !
हे भारत के शक्तिपुंज !
धीर-वीर, हे सत्यशोध !
जीवंत सभ्यता के पुण्याधार ,
सुदीर्घ जीवटता के भाग्यबोध !
तुम रश्मि हो दिव्य प्रभा सी ,
विभत्स, तिमिरों के अवरोध ,
ज्ञान-विज्ञान अथाह संस्कृतियों के ,
विलक्षण एकरूपता का प्रबोध !
हे जीवन-मूल्यों के स्वस्थ तंत्र ,
विविधता के संरक्षक परितंत्र ;
क्लिष्ट विषयों से परे – स्वतंत्र ,
सनातन सारगर्भित युक्त मंत्र ।
युग-युग से परिलक्षित आर्त स्वर ,
कुसंस्कृतियों के विषम संकुचित ज्वर ,
वेधे जा हर विषाद, प्रखर-भास्वर ;
जैसे तिमिरांचल वेध रहे भाष्कर !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’