Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2021 · 4 min read

वेदने ! तू धन्य है री

प्रणय-पीड़ा की प्रतिध्वनि है वेदने ! तू धन्य है री !

निश्चय ही सृजन का मूल पीड़ा है । पीड़ा के गर्भ से ही काव्य-शिशु जन्मता है । पीड़ा/संवेदना के अभाव में कविता, कविता नहीं सिर्फ शब्दाडम्बर है । ह्रदय में जितनी गहन संवेदना होगी उसका प्रकटीकरण भी उतना ही मर्मस्पर्शी होगा । भाव प्रकटीकरण की सदानीरा स्रोतस्विनी की एक रागात्मक धारा का नाम है गीत । गीतों का चुम्बन अधरों को तभी मिलता है जब या तो आनंदोल्लास के घने बादल छाये हों या मानस-तट दर्द के दरिया में डूब गए हों ।
” वेदने ! तू धन्य है री ‘ के गीत भी पीड़ा-प्रसूत हैं । और हों भी क्यों नहीं काव्य स्वानुभूत जीवन का हस्ताक्षर जो है । कवयित्री अनुराधा पाण्डेय के ये शब्द-चित्र सायास कर्म की प्रतिलिपि नहीं वरन ये तो उनके स्वानुभूत जीवन की अश्रु मिश्रित वे मनोहर छवियाँ हैं जो हृदय-पृष्ठों पर स्वमेव अंकित हो गयीं जिन्हें बाद में सामान्य पृष्ठों पर मुद्रित कर पुस्तक का रूप दे दिया गया । कवयित्री का यह पीर-सिंधु कुछ पलों या घटाओं का संचित परिणाम नहीं है । यह तो असंख्य सुखद क्षणों, अगणित मधुर स्मृतियों, सतरंगी सपनों, प्रेमपूर्ण उपहारों….की उपज है । जो भव-आघातों से संपीडित होकर, हृदय-तटबंध तोड़कर नयन-निर्झर से झरा है । अनुष्ठान की प्रथम पुण्याहुति देखिए- इस ह्रदय की आह ही तो/ साँस में उन्माद भरती/ पीर की मसी ही जगत में / तूलिका में नाद भरती/……रीत जाते मोद के क्षण/ ऊबती जब चेतना/ पृष्ठ पर आकर हृदय के/ पालती तब वेदना । (पृष्ठ 11, 12 )
जगत द्वारा क्षिप्त पाश में सरल, सहृद आसानी से फँस कर प्रवंचकों के सहज शिकार हो जाते हैं । पर कब तक ? वंचना की उम्र लम्बी नहीं होती । छल-प्रपंच को बेनकाब होते देर ही कितनी लगती है ? तभी को कवयित्री कहतीं हैं- अब मृषा को नैन मेरे/ दूर से पहचानते हैं / मधु लपेटे छद्म स्वर को / अब न सच्चे मानते हैं । (पृष्ठ 14 )
यह ध्रुव सत्य है चर्मोत्कर्ष के पश्चात अधोपतन की यात्रा आरंभ हो जाती है । सौंदर्य की पराकाष्ठा के बाद बदसूरती का पैर पसरने लगता है । न चाहते हुए भी हास को रुदन की गलियों से गुजरना पड़ता है । यहाँ शाश्वत कुछ भी नहीं । सब क्षणभंगुर है । इस मर्त्यलोक में अमरत्व का वरदान भला किसने पाया ? यही तो कह रही हैं ‘ वेदने तू धन्य है री ‘ की सरल साधिका- पता हमें अवसान सभी का/ क्षणभर के हैं चाँद सितारे / क्षणभर नदियाँ रस वाही हैं / दग्ध सिंधु जल खारे-खारे । (पृष्ठ 17 )
प्रेम-मार्ग सहज नहीं है । इस पर चलना खड्ग -धार पर चलना है । पग-पग पर प्रेम विरोधी आँधियों का सामना करना पड़ता है । रक्तिम आँसुओं से सपनों का अभिषेक करना होता है । इतना ही क्यों कभी-कभी तो इस प्रेम-यज्ञ में प्राणों की आहुति तक देनी पड़ जाती है । कवयित्री के ये शब्द इस बात के साक्षी हैं – क्यों जगत यह रोक देता / व्यर्थ कह पावन मिलन को / मार कर क्या प्राप्त होता / वंद्य द्वय उर के मिलन को / ( पृष्ठ 24 )
कवयित्री विरह-मिलन की धाराओं में संतरण करती हुई कभी कटु अनुभवों की चुभन से सिहर उठती है तो कभी सहवास जन्य स्मृतियों में खोकर प्रिय का आह्वान कर कहने लगती है – याद कर द्वय चाँदनी में/ साथ मिल जब थे नहाए / शांत नद एकांत तट पर/ प्रेम धन जो थे लुटाए ……….खींच ले वे चित्र मधुमय / प्रीतिमय आलिंगनों के / टाँक ले अपने अधर पर / शुचि छुवन मृदु चुम्बनों के / (पृष्ठ 27, 28)
समीक्ष्य कृति में व्यक्त प्रेम इह लौकिक न होकर पार लौकिक है । राधा-मीरा के प्राण मदन को अपना सर्वस्व मानकर कवयित्री उन्हीं को संबोधित कर अपनी मन-पीड़ा व्यक्त करती है । कभी-कभी तो कवयित्री इतनी भाव विह्वल हो उठती है कि अपनी चेतना खोकर उस सर्वव्यापी सतचित्तानंद परमेश्वर से संवाद करने लगती है । बानगी देखिए- तू सुने, पग रुके, या करे अनसुनी / साधना पर सतत प्राण पण से चले / प्राण बाती भिगो प्रेम के नीर में / घुर प्रलय तक सतत दीप जले ।……..पथ विभाषित करूँ आदि से अंत तक / क्या पता किस डगर से करे तू अयन ? ( पृष्ठ 39, 40 )
कृति को आद्योपांत पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे वेदना स्वयं पृष्ठों पर उतर कर अपनी जुबानी कवयित्री की कहानी कह रही है । कृति के समस्त पदों को यहाँ रखा जा सके यह संभव नहीं उनका रसास्वादन तो पुस्तक पठन कर ही किया जा सकता है । तथापि किंचित पद जो बरबस पाठक को अपनी ओर आकृष्ट करने में सक्षम हैं उनका शिल्पसौन्दर्य यहाँ सहज निहारा जा सकता है जैसे- मैं पीड़ा के सुमन बटोरूँ / तुम निज व्रण के माणिक लाना / नहीं अधिक श्रम होगा इसमें / दुख अपना जाना पहचाना । (पृष्ठ 47 ) तुम अपने सब अवसादों को / दुल्हन जैसा आज सजना / मेरे मन के दुख दूल्हे हित / माथे का चंदन भी लाना । ( पृष्ठ 48 ) मानती हूँ है विरह तो है मिलन की यामिनी भी / है अमा की रात यदि तो कभी है चाँदनी भी । ( पृष्ठ 73 ) बोल तेरे कुन्तलों में / टाँक दूँ नभ के सितारे / पाँव तब धरना धरा पर / जब बिछा दूँ चाँद तारे । ( पृष्ठ 112)……
गीत संग्रह को काव्यशास्त्रीय कसौटी पर कसकर देखें तो भावानुकूल छंद विधान भाषिक सौंदर्य को द्विगुणित करता जान पड़ता है । विविध छंदों एवं अलंकारों की छटा दर्शनीय है । भावशिल्प भी बेजोड़ पायदान पर खड़ा है ।
गीतों की श्रेष्ठता स्वयं सिध्द है । इसके लिए महीयसी महादेवी वर्मा की अनुगामिनी अनुराधा पाण्डेय जी को हार्दिक बधाई एवं आगामी कृतियों के लिए शुभकामनाएँ । समय-सूर्य आपके सृजन को अपनी स्वर्णाभ किरणों से सदैव प्रभाषित करता रहेगा इसी विश्वास के साथ समीक्ष्य कृति के लिए इतना ही कहूँगा-
वेदने ! तू धन्य है री, पा गई वरदान मनु से /
राधिका से प्राण-अमृत, सत्व का संज्ञान कनु से /
कह रही हैं खुद दिशाएँ, गंध-गंगा हाथ लेकर- /
शब्द का अभिषेक फिर से, हो रहा अम्लान तनु से ।

पुस्तक नाम- वेदने ! तू धन्य है री (गीत-संग्रह)
कवयित्री- अनुराधा पाण्डेय ‘काव्य केशरी’
प्रकाशक- श्वेतांशु प्रकाशन नई दिल्ली
मूल्य- 250 रु

अशोक दीप
जयपुर
8278697171

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 300 Views

You may also like these posts

अभी तो कुछ बाकी है
अभी तो कुछ बाकी है
Meera Thakur
*यह समय के एक दिन, हाथों से मारा जाएगा( हिंदी गजल/गीतिका)*
*यह समय के एक दिन, हाथों से मारा जाएगा( हिंदी गजल/गीतिका)*
Ravi Prakash
बाते सुनाते हैं
बाते सुनाते हैं
Meenakshi Bhatnagar
" मायने "
Dr. Kishan tandon kranti
है कौन वहां शिखर पर
है कौन वहां शिखर पर
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
भोर पुरानी हो गई
भोर पुरानी हो गई
आर एस आघात
जियो जी भर
जियो जी भर
Ashwani Kumar Jaiswal
उम्मीद
उम्मीद
Dr fauzia Naseem shad
2455.पूर्णिका
2455.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
पीहर आने के बाद
पीहर आने के बाद
Seema gupta,Alwar
उस दर पर कोई नई सी दस्तक हो मेरी,
उस दर पर कोई नई सी दस्तक हो मेरी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*पितृ-दिवस*
*पितृ-दिवस*
Pallavi Mishra
काल का स्वरूप🙏
काल का स्वरूप🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
लव जिहाद_स्वीकार तुम्हारा ना परिणय होगा...
लव जिहाद_स्वीकार तुम्हारा ना परिणय होगा...
पं अंजू पांडेय अश्रु
आजकल तो हुई है सयानी ग़ज़ल,
आजकल तो हुई है सयानी ग़ज़ल,
पंकज परिंदा
ये क़िताब
ये क़िताब
Shweta Soni
तरुण
तरुण
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
पढ़ें बेटियां-बढ़ें बेटियां
पढ़ें बेटियां-बढ़ें बेटियां
Shekhar Chandra Mitra
तन्हा आसमां
तन्हा आसमां
PRATIK JANGID
मुलाकात
मुलाकात
Ruchi Sharma
पूछ1 किसी ने हम से के क्या अच्छा लगता है.....आप
पूछ1 किसी ने हम से के क्या अच्छा लगता है.....आप
shabina. Naaz
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
ग़ज़ल (गहराइयाँ ग़ज़ल में.....)
डॉक्टर रागिनी
** शिखर सम्मेलन **
** शिखर सम्मेलन **
surenderpal vaidya
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Deepesh Dwivedi
अच्छा लगता है
अच्छा लगता है
Jyoti Roshni
#तू वचन तो कर
#तू वचन तो कर
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
..
..
*प्रणय*
जन्म पर बाटी मिठाई
जन्म पर बाटी मिठाई
Ranjeet kumar patre
मेरे दीदी आप के लिए
मेरे दीदी आप के लिए
पूर्वार्थ
चुन लेना राह से काँटे
चुन लेना राह से काँटे
Kavita Chouhan
Loading...