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10 Dec 2017 · 1 min read

वेदना—–2

वेदना—–2
—————–

हाँ जी हाँ पंडित हूँ मैं
वेद ही पढऩे आया था,
फिर भी वेदनाएं पढने लगा !
धार्मिक अवधारणा के नाम
सर्वत्र फैले बहशीपने की,
जाती संप्रदाय के नाम
समाज से विभक्त होते धड़े की।
वेदनाएं नारी के अपमान की,
प्रति पल घटते बुजुर्गों के सम्मान की,
माँ बाप के अपमान की,
भाई भाई में आपसी दुराव की,
पढऩे लगा मैं वेदनाएं
समाजिक कुप्रथाओं के प्रभाव की,
समाज में बढते अनाचार,ब्यभिचार
दुर्भावनाग्रस्त दुष्प्रभाव की,
वेदनाएं विधवाओं के प्रति
समाज में घटते सद्भावों की,
वेदनाएं पश्चात्य सभ्यता से आहत
भारतीय संस्कार, व संस्कृति की,
मानवता से विमुख होते
वर्तमान परिवेश और प्रवृत्ति की,
हाँ जी हा पढने लगा मैं…..वेदनाएं!
सडक पर भटकते
भारत के भावी भविष्य की,
शहर दर शहर बाल श्रमिकों के
विलुप्तप्राय बालपन के हित की,
प्रदुषित होती वायुमंडलीय हवाओं की,
विष मिश्रित नदियों के जलधाराओं की,
वेदनाएं ममता के आहत आंचल की
बिटिया बीन विलखते आंगन की,
हाँ जी हा वेद पढ न सका
पढने लगा मैं……..वेदनाएं!!
………
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
406 Views
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