वेदना
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ? एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
दूरियाँ इतनी क्यों बढ़ाये कोई
पास मेरे इतना भी क्यों आये कोई ।।
बाद जाने के दिल ये सुबकता रहे
दर्द रह रह के यूं ही जो उठता रहे ।।
है जिगर कोई कि इस
की हकीकत बताये कोई ।।
है फजीहत या के हकीकत कोई
वेदना है या के नसीहत कोई ।।
दर्द से क्यों इतना इंसाँ परीशांन है
दर्द है या के कोई शैतान है ।।
गम से निजात क्यों मिलती नही
रात काली सुब्ह में क्यूँ बदलती नही ।।
डूबता सूरज अब डूबता ही जा रहा
बदलियाँ ये काली हैं जो छटती क्यों नहीं ।।
कसमसाहट से आदमी की जा निकलती जा रही
दया भगवान को किसी राह आती क्यों नही ।।
दूरियाँ इतनी क्यों बढ़ाये कोई
पास मेरे इतना भी क्यों आये कोई ।।
बाद जाने के दिल ये सुबकता रहे
दर्द रह रह के यूं ही जो उठता रहे ।।