वेदना
पूछते हैं
हुआ क्या आज तुमको
मुस्कुरा देते हैं अधर
कहें क्या और कैसे?
कितना कुछ है समोया हुआ
कहीं कहीं छितरा हुआ सा..।
एकाकीपन, बेगानापन
जैसे खुद से ही रुठा
बंजारा सा मन ।
हुआ क्या तुमको??
अंजानी पीर की लकीर
गहरे तक भेदती
उतरती चली जाती है.
हृदय के अंतस तक,
अतल गहराइयों में…।
ध्वनित होते हैं यह शब्द
बार बार,बार बार .।
और फिर गूंजते हुये
पुकारते हैं ..
तुम ——आप
कितना
आसां होता है न किसी के.लिए.
आप से तुम तक आना
और फिर अजनबीयत
का गहरा अहसास देना
वापिस तुम से आप तक आना।
एक खलिस ,एक चिढ़ ..
उन्मादी हो कर
भेद जाती है ..
जैसे किसी
बंजर होती भूमि
में ग्रिल मशीन से
छेद करना ,
जीवन रोपण की
आशा से
या फिर सब्बल लेकर
खोदना..।
मर्मांतक पीड़ा ..
उफ्…
समझ पाते तो शायद
नहीं …शायद नहीं
यकीनन समझ पाते
कुछ शब्द बन जाते हैं.
प्राणवायु और ,
जीवनौषधि!!
काश…
हुआ क्या है “आपको”
का वजन महसूस कर पाते
तो कहते
तुम ठीक हो न!!
विस्मृत परछाइयों के.
इर्द गिर्द ,शायद
पहुँच पाते …।
अव्यक्त वेदना के
उस धरातल तक
जिसे शब्द देने की
कोशिश में और
विश्रृँखलित होती जाती
वेदना ..।
पाखी