वृद्ध आश्रम !
क्यों वृद्ध आश्रम बनाए जा रहे,
क्यों बुजुर्ग इतना रुलाए जा रहे।
क्या कमी रह गई परवरिश में,
क्यों मां बाप यूं सताए जा रहे।
जिन्होंने सपनो को मारा था,
बच्चो के लिए सब हारा था।
वो क्यों इतना खटकने लगे,
घर में अकेले भटकने लगे।
क्या इसी दिन के लिए,
बच्चों को उन्होंने पोसा था।
निछावर किया था सब कुछ,
इक पल भी नहीं सोचा था।
बच्चे बड़े होकर छोटे हो जायेंगे,
मां बाप को ही बोझ बताएंगे।
वृद्ध आश्रम की राह दिखाएंगे,
नई रीत उनको ये सिखलाएंगे।
जाने दुनिया किस ओर चली,
भूले हम संस्कारों की गली।
संवेदना भी समाप्त हो रही,
आंखों की शर्म भी खो रही।
बच्चे भूल गए समय का खेला,
दुनिया कर्मों का अदभुद मेला
हर कोई यहां जायेगा धकेला।
जैसा बीज बोएंगे आज यहां,
वैसा फल पाएंगे कल वहां।
जिनके मां बाप आज रोएंगे,
वो भला चैन से कैसे सोएंगे।
जो मां बाप को आज रुलाएंगे,
उनके बच्चे भी उन्हें सताएंगे।
इसीलिए वृद्ध आश्रम बढ़ते जा रहे,
अपने कर्मो का फल सब पा रहे।
जिन्होंने मां बाप को निकाला था,
वो खुद भी आज निकले जा रहे।