वृद्धाश्रम
सुनीता आज वॄध्दाश्रम में आई है । यहाँ सब वृद्ध जनों की अपनी अपनी दुःखद कहानियाँ है जिसे सुन कर सुनीता का दिल भर आया ।
एक तरफ सुनीता ने सोचा :
“चलो अच्छा ही है, उसकी बहू सुधा की जिल्लत भरी जिंदगी से यहाँ सुकून तो मिलेगा ।”
लेकिन रह रहकर उसे बंटी की याद आ रही थी । खाना खाते समय वह पहला निवाला सुनीता से ही खाता था ।
सुधा और समीर यह जानते थे , एक तरह से सुधा और बंटी दो तन पर एक जान थे । पड़ौस के लोग कहते भी थे :
” दादी पौता कभी अलग हुए तो कैसे रहेंगे ? ”
दुःख यही था कि यह सब जान कर भी बहू बेटे इतने निर्दयी हो गये और उसे यहाँ छोड़ गये ।
सुनीता का खाना खाते समय पहला निवाला थोड़ी देर के लिए उसके हाथ में अटक जाता , उसकी आंखो में आँसू आ जाते , लेकिन फिर दिल कठोर कर खाना खाने लगती ।
दिन गुजरते गये , बंटी मौज मस्ती में रम गया और दादी के निवाले को भूल गया , लेकिन रमा के कांपते हाथ अभी भी खाना खाते समय पहले निवाले पर थम से जाते हैं ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल