वृद्धाश्रम
लेने सुध माँ बाप की,एक कलयुगी सन्तान
पँहुची वृध्दाश्रम,लगा अपने मुँह पर मास्क
जाकर मुख्य द्वारपे,कुछ यूँ परिचय बताया
साथ अपने नामके,पिता का नाम लिखाया
फिर बोला दरबान से,जल्द उनसे मिलाओ
भेजो संदेश और मेरे,माँ बाबा को बुलाओ
कहो उनसे हूँ लाया,दवाएँ कुछ खाने को
रोग प्रतिरोधक,क्षमता उनकी बढ़ाने को
देख अधीर पुत्र को,दरबान ने दौड़ लगाई
सहर्ष जा कर,बुजुर्ग दम्पति,को दी बधाई
बोला उनसे पुत्र आपका,मिलने है आया
साथ अपने दवाइयाँ,आपके लिए है लाया
सुन खबर यह,माँ की बूढ़ीआँखें भर आई
हल्की सी मुस्कान,पिता के लबों पर आई
हृदय में मचने लगा,आशंकाओ का शोर
जल्दी जल्दी उठे कदम,दरवाजे की ओर
मगर मिलते ही बेटे से,उत्साह हुआ पस्त
महल अरमानो का,पलभर में हुआ ध्वस्त
जब बेटे ने समय की,कमी का रोना रोया
पिता के व्यथित मन ने,धैर्य अपना खोया
लरजते लबो से,कहा पिता ने तुम जाओ
समय अपना हम पर,तुम न व्यर्थ गँवाओ
तुम ना समझ पाओगे ,ममता की लाचारी
हाँ कर लेना तुमसे उम्मीद,थी भूल हमारी
लेकिन बेटा तुम अब,जब कभी भी आना
नाम ना मेरा,साथ तुम्हारे,नाम के लिखाना
मुझे ना ऐसे और तुम,करना अब शर्मिंदा
जीने दो,सम्मान से,हूँ जब तक मैं जिंदा
अगर आओ ऐ “अश्क”,तो काम ये करना
नकाब से एक अपना,पूरा चेहरा ढँकना
अरविन्द “अश्क”