वृक्ष हमारे जीवनसाथी
“दर्द से शिथिल इस दुनिया मे
कौन है मेरा नाम
ये तो मेरी माटी जाने
अथवा जाने राम,
ना सुख कि मै आस करु
ना करु किसी से कभी मै राग
अपनो के बीच निज जीवन चाहू
बांटते हुये सभी मे अनुराग ,
कटते जीवन के आधारो पे
फिर कौन लगाये विराम
ये तो मेरी माटी जाने …….
पर्णो से दूं मै छाया सबको
करुं मै जीवन को खुशहाल
बन आधार मै बारिश का फिर
करता हू कृषको का खयाल,
महकाउं बागो को फुलो से अपने
जानु फलो से मै क्षुधा का हाल
बैर ऐसी फिर कौन सी मुझसे
जानु जरा मै उसका नाम
ये तो मेरी माटी जाने …….”