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9 Mar 2021 · 1 min read

***वृक्ष की व्यथा***

—- वृक्ष की व्यथा. ——-
वृक्ष हूं, प्रकृति द्वारा सजाया ,हर तरह से दक्ष हूं।
मानव समाज के सामने ,रख रहा अपना पक्ष हूं।।
मेरे अपने परिवार के साथ, अपनी जगह खड़ा हूं।
अपना अस्तित्व बचाने के लिए, मै खूब लड़ा हूं।।
विस्तार अपना करने के लिए, तुमने मेरे कुल को काटा।
दर्द कितना हुआ होगा मुझे ,क्या मेरे पास मिलकर बांटा।।
चलाते रहे ऐसे ही, आरिया मुझ पर,
मैं समूल नष्ट हो जाऊंगा।
आने वाली आपकी पीढ़ियों को, फिर कैसे!
फल फूल छाया दे पाऊंगा।।
मेरे न रहने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा।
सोचो सोचो फिर आपका यह जीवन कैसे बढ़ पाएगा।।
रहम करो मुझ पर, सितम न ऐसा कीजिए।
मै भी बचा रहूं अनुनय,जीवन सबको जीने दीजिए।।
राजेश व्यास अनुनय

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 1145 Views
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