वृंदावन :
वृंदावन : कुछ कुंडलियाँ
[1]
राधा जी और बाँसुरी (कुंडलिया)
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राधा ने ली बाँसुरी , कान्हा जी से छीन
बोलीं कुछ बातें करो ,क्या बंसी में लीन
क्या बंसी में लीन ,अधर से लगीं बजाने
अब कान्हा बेचैन ,लाड़ के खुले खजाने
कहते रवि कविराय ,तत्त्व है आधा-आधा
आधे में श्री श्याम , शेष आधे में राधा
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[2]
निधिवन मे रास (कुंडलिया)
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निधिवन में अब भी बसे, युगल दिव्य सरकार
आते प्रतिदिन रात्रि को , करते नृत्य-विहार
करते नृत्य – विहार , रास की गाथा गाते
जग में सबसे उच्च , प्रेम होता बतलाते
कहते रवि कविराय ,सुधा रस पाते जन-जन
धन्य राधिका-कृष्ण ,धन्य है श्री श्री निधि वन
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[ 3 ]
वृंदावन में समाधि हरिदास जी (कुंडलिया)
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निधिवन में हरिदास जी ,चिर निद्रा में लीन
तानसेन के गुरु प्रवर ,तन – मन से स्वाधीन
तन – मन से स्वाधीन , दिव्य संगीत सुनाते
ईश्वर को यह भेंट , सिर्फ ईश्वर – हित गाते
कहते रवि कविराय ,छड़ी – मिट्टी का बर्तन
दो पावन पहचान ,.देख लो जाकर निधिवन
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[ 4 ]
बाँके बिहारी मंदिर ,वृंदावन (कुंडलिया)
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बाँके बिहारी की श्री , शोभा अपरंपार
भीड़ दिखी हर द्वार पर ,दिखते भक्त अपार
दिखते भक्त अपार ,कठिन दर्शन कर पाना
जिस पर कृपा-प्रसाद ,धन्य है उसका आना
कहते रवि कविराय ,सौम्य छवि पल-पल झाँके
टेके जम कर पाँव , दिखे ठाकुर जी बांके
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451